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गुरुवार, 24 मई 2012

बेटा-बेटी एक समान - दुनू के होइ एकहि सम्मान!


विगत किछु दिन सऽ दिमागमें आबि रहल अछि जे मिथिलामें दहेज मुक्त समाज निर्माण लेल बेटावाला के सेहो वरवधु (पुतोहु)के खोजी ठीक जेना बेटीवाला करैत छथि तहिना करबाक चाही - तखनहि समान व्यवहार चलत आ बेटीके मूल्य सऽ समाज अवगत होयत, आ समुचित जोड़ी सेहो मिलान करय के संभावना बढत। एहि पर अहाँ सभ सेहो अपन राय दी।

ओना हम प्रण केने छी जे अपन बेटा के लेल हम स्वयं बेटीवाला के घर जाय के विवाह के प्रस्तावना राखब। कि अहाँ सेहो एहि लेल तैयार छी? यदि हाँ तऽ प्रण लेल जाउ।

बेटा-बेटी एक समान - दुनू के होइ एकहि सम्मान!

तखन फेर खाली बेटीवाला पर ई भार किऐक जे ओ अपन बेटी लेल वर खोजैथ - खोजैतो हजारों रुपैया के बर्बादी करैथ - आ फेर बेटीके प्रस्तावना रखला उपरान्त वरपक्ष सँ कोनो सम्मान बिना माँगरूपी दहेज के नहि पाबैथ... कि ई मानसिक हिंसा आ पापाचार नहि भेल?

यदि बेटावाला सेहो समुचित जोड़ी तकता तऽ पक्का बेटीके (मैथिलीके) आत्मबल बढत आ मिथिलानी में शिक्षा के बेहतरीन प्रवर्धन होयत जे आजुक मिथिला जे एकभग्गू अछि तेकरा सेहो सुधार करत आ वैश्विक पटल पर मैथिली बेटी के स्वरूप उभारत। आखिर सीताजी के बाद बहुते कम मैथिली भेली जे विश्वमें अपन स्थान बनेने होइथ आ एहि लेल यदि किछु जिम्मेवार अछि तऽ ओ अछि दहेज के चाप।

सुधरू मैथिल! सुधरू!
दहेज मुक्त मिथिला बनाबू!

सौराठ सभा के पुनर्जीवन लेल सेहो सोचय जाउ कारण घर-कुटमैती बहुत कठिन आ भैरगर भेल जा रहल अछि।


हरिः हरः!

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